ग़ुमसुम़
अब वो चुप रहते हैं कुछ कहते नहीं।
हम बोलते हैं तो भी वो सुनते नहीं।
समझ ना पाऊं कल तक जो चहकते रहते।
क्या है उनके ग़ुमसुम़ से रहने की वज़ह आज।
क्या कोई ग़म है उनके इस क़दर चुप रहने का राज़ ।
कल तक तो वो बोलते थे हम सुनते रहते ।
पर कुछ बात अलग सी है आज ।
सोचता हूँ क्या मै ख़तावार हूँ उनकी इस चुप सी लगी का।
या बायिसे ग़म हूँ उनकी इस ग़ुमसुम़ी का ।