ग़ज़ल
चलो दीवानगी से दिल लगायें.,
घड़ी भर को खुशी से दिल लगायें,,
है पैकर आदमी धोखा-धड़ी का.,
भला क्या आदमी से दिल लगायें,,
अंधेरा जब के रास आने लगा है.,
तो फिर क्यूँ रौशनी से दिल लगायें,,
जो अपने थे वो सब निकले पराये.,
किसी इक अजनबी से दिल लगायें,,
हमें मालूम है ये बे-वफ़ा है.,
कहाँ तक ज़िंदगी से दिल लगायें,,
सिराज अब शाहर से उकता गया दिल.,
चलो आवारगी से दिल लगायें..!
सिराज देहलवी@ ओ.पी.अग्रवाल
०८/०७/२०१६