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18 Jan 2022 · 1 min read

‘ग़जल’

खूबसूरत लम्हें धीरे-धीरे निकल गए,
समय की धार में जाने कब फिसल गए।
तिनका-तिनका जोड़ा था तूफा़ं ले उड़ा,
चट्टानों से अरमान बर्फ बन पिघल गए।
मन जब लहूलूहान हुआ दर्द से मचल गए,
निकले आँख से आँसू उनको निगल गए।
पड़ गए तलुए में छाले नज़रों में जाले,
जो जग में थे अपने सारे बदल गए।
लुटती आबरू अपनों के हाथों,
देखा तो सच में हम तो दहल गए।

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