ख़्वाहिश है की फिर तुझसे मुलाक़ात ना हो, राहें हमारी टकराएं,ऐसी कोई बात ना हो।
ख़्वाहिश है कि फिर तुझसे मुलाक़ात ना हो,
राहें हमारी टकरायें, ऐसी कोई बात ना हो।
अंधेरों में गुम होने की आदत है मुझे,
जिसकी सुबह फिर आये, ऐसी रात ना हो।
ज़िन्दगी ने हमेशा सफ़र में रखा है मुझे,
घर की दहलीज पास आ जाए, ऐसे हालात ना हों।
मरुभूमि की तपिश, जाने क्यों भांति है मुझे,
जिसकी बूंदें सुकूं दे जाए, ऐसी बरसात ना हो।
जो हर पल मदहोशी, की आगोश में डुबाये मुझे,
जहन की जमीं पे मेरे, ऐसे कोई ख़्यालात ना हों।
फ़क़ीरों जैसे उस ख़ुदा में, भटकना है मुझे,
जो एक मुक्कम्मल जहाँ दे जाए, ऐसी कोई खैरात ना हो।
यूँ तो दिए की रौशनी भी चुभती है मुझे,
जिससे आंखें धुंधला जाएँ, वो उल्कापात ना हों।
एक सितारा टूटे और सपनों की दुआएं दे मुझे,
किसी क्षितिज़ पे ऐसी, कोई क़ायनात ना हों।
एक बार फिर से खुशियां छू जाएं मुझे,
किसी जादू की छड़ी में वो,करामात ना हों।
जो ग़मों को छीन, तन्हा कर जाए मुझे,
किसी के हाथ में ऐसी, कोई सौगात ना हो।
आस्था की डोर में, फिर से पीरो दे जो मुझे,
ऐसा मंदिर कभी, किसी को ज्ञात ना हो।
प्रीत ने विश्वास की आस में छला है मुझे,
फिर मेरी भावनाओं पर वो आघात ना हों।
ख्वाबों में भी नयी सांसें दे जाए जो मुझे,
कभी ऐसे किसी भ्रम की, शुरुआत ना हो।
ख़्वाहिश है की फिर तुझसे मुलाक़ात ना हो,
राहें हमारी टकराएं,ऐसी कोई बात ना हो।