ख़्वाहिश बे-हिसाब लिखती है…
ख़्वाहिश बे-हिसाब लिखती है,
मेरे ख़तों के जवाब लिखती है ।।
वो नहीं लिखते तो क्या हुआ,
ख़्वाहिश लाजवाब लिखती है ।।
गुल-फ़िशाँ से महकता चमन,
क़बा-ए-गुल शबाब लिखती है ।।
अभी निकल रही सवेरा होने दें,
कली खिलता गुलाब लिखती है ।।
जगमगाती जिसकी रोशनी में,
चादनी रात, महताब लिखती है ।।
कौन कैसा सब देखता ‘हनीफ़’,
ये क़लम सब हिसाब लिखती है ।।
#हनीफ़_शिकोहाबादी✍️