ख़्वाब सच्चा हूँ किसी की जान हूँ मुझ से मिलो
मैं महकते दिल का इक अरमान हूँ मुझ से मिलो
ख़्वाब सच्चा हूँ किसी की जान हूँ मुझ से मिलो
जिसको बदले में कभी मिलता नहीं है शुक्रिया
सर झुकाए मैं वही अहसान हूँ मुझ से मिलो
पार कर सकते नहीं दुश्मन बुलन्दी भी मेरी
हौसले की मैं वही चट् टान हूँ मुझ से मिलो
इक जगह ठहरा हुआ मील का पत्थर हूँ मैं
जैसे कि राहों की मैं पहचान हूँ मुझ से मिलो
जानता है कौन दुनिया में ठहरना कब तलक
मैं भी औरों की तरह मेहमान हूँ मुझ से मिलो
नेकियों का औ’र बदी का फ़ैसला करती है जो
मैं वही कुदरत की इक मीज़ान हूँ मुझ से मिलो
मौत बरहक़ है हमेशा याद रखना चाहिए
सबको आना है यहाँ शमशान हूँ मुझ से मिलो
उम्रभर खाता रहा जो रिज़्क़ करके मेहनतें
मैं वही ‘आनन्द’ इक इन्सान हूँ मुझ से मिलो
शब्दार्थ:- मीज़ान = balance/तराजू, बरहक़ bar-haq = true, रिज़्क़ = food
– डॉ आनन्द किशोर