ख़्वाब आँखों में कोई फिर से सजाया होगा
रुख़ पे उसके भी कोई अश्क़ तो आया होगा
ख़्वाब आँखों में कोई फिर से सजाया होगा
दर्द चेहरे पे उभरकर के नुमायाँ है अभी
राज़ सीने में मोहब्बत का छुपाया होगा
नाम लेने में मेरा उसको हया आई थी
बस इशारे से मेरा नाम बताया होगा
जिस किसी को भी मोहब्बत से बनाया अपना
ये न मालूम था वो पल में पराया होगा
साहिलों पर न सफ़ीना है न कश्ती कोई
कारवाँ कोई मगर रात में आया होगा
घौंसलें यूँ ही नहीं गिरते रहे हैं नीचे
मेरे शाख़ों को हवाओं ने हिलाया होगा
सीधा-सादा सा कभी गाँव से जो आया था
उसको होशियार ज़माने ने बनाया होगा
आप कहते हो के ‘आनन्द’ परेशाँ कब है
कैसे सोचा है न यादों ने सताया होगा
– डॉ आनन्द किशोर