ख़्वाबों में ख़्वाब
मेरी पलकों को चूमते हुए
तेरे होठों ने अलविदा कह मुझसे
मैंने इज़हार तो करना चाहा
पर सच कह ना पाया तुझसे
कि मेरे दिन तेरे बिन
ज्यों ख़्वाब हो रातों के बिन
क्या खो दिया मैंने तुझे खोकर
बस यूँ ही लगता है मुझे
ख़्वाबों में ख़्वाब देखता हूँ हर दिन
लहरों के शोर के बीच में मैं
सुनहरी रेत हाथों में थामता हूँ
बंद मुठ्ठी से बहती हुई समय की धार सी
कण कण बिखरत हुए देखता हूँ
क्यों ना थाम सकता हूँ मैं
वो पल जो तेरे साथ में बीते
रेत की तरह बिखर जाते हैं मेरे
ख़्वाबों में ख़्वाब हर दिन
–प्रतीक