ख़िलाफ़
मुझसे होकर तो जाती है
मग़र तुझसे होकर नही आती
ये हवा भी मेरे #ख़िलाफ़ चलती है।
सारा मोहल्ला हुआ रौशन
अंधेरा मेरे घर रह गया
ये रौशनी भी मेरे #ख़िलाफ़ चलती है।
मैं अपने हिसाब से चलूं
या जमाने के हिसाब से चलूं
ये घड़ी भी मेरे #ख़िलाफ़ चलती है।
मैं जिंदगी से हूं तंग
और अपनी मौत मांगता हूं
सांसे भी मेरे #ख़िलाफ़ चलती है।
अब क्या कोई चले ना चले
जब अपना ही बस ना चले
ये चाहते भी मेरे #ख़िलाफ़ चलती है।
पहले मैं चला था या
ये चाल तुम चली थी
ज़िन्दगी भी मेरे #ख़िलाफ़ चलती है।
वो कहती है तुम ठहरो
अब मैं चलती हूं
बातें भी मेरे #खिलाफ़ चलती है।
नीरा नंदन ‘तेजस’