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18 May 2019 · 1 min read

ख़ामोशियाँ कुछ कहती हैं।।

ख़ामोशियाँ कुछ कहती हैं,,

अनदेखी अनसुनी दास्ताँ
बयाँ करती हैं,चुप रह कर
भी बहुत कुछ कह देती हैं,
कितने होते दुख के सायें
फ़िर भी ख़ामोश सहती हैं,
न बिखरतें अलफ़ाज़ न
मिलती ज़मीं. पे घर
उसे फ़िर भी गुपचुप
सी रहती हैं,भीगते हैं आँसूं
उसके जब खाली रहती हैं,
भूख से लाचार अपनी उम्र
में भूख कहती हैं,
भूख प्यास से वो मासूम
जूझती हैं,
विवश हैं वो ये कहती हैं,
ख़ामोश ज़ुबाँ भी अपने साथ
ख़ामोश रह जाती हैं, बयाँ नहीं
करती वो फ़िर भी ख़ामोशी
उसकी कहती हैं।।
✍️✍️
हार्दिक महाजन

Language: Hindi
1 Like · 303 Views
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