ख़ामोशियाँ और बहरापन
मैंने बहुत बुलाया
पर तुमने सुना ही नहीं
मैंने सोचा अब मेरा खामोश होना ही बेहतर है
पर मेरी खामोशियाँ तुम्हे बुलाती रहीं
मैं शायद ये भूल गयी की
तुम मेरी खामोशियाँ क्या सुनोगे
तुम तो एक बहरे हो
तुम्हें तो मेरी तमाम चीखें भी न सुनाई दी |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’