क़ाफ़िले का रहनुमा तू क़ाफ़िला लूटा न कर
तोड़कर सबका भरोसा इस तरह धोखा न कर
क़ाफ़िले का रहनुमा तू क़ाफ़िला लूटा न कर
जोड़ दे टूटे दिलों को ये अगर होता नहीं
दो दिलों के दरमियाँ तो फ़ासला पैदा न कर
हो तिजारत या मुहब्बत बाँटनी पड़ती ख़ुशी
सब्र तुझमें है नहीं ग़र तू कभी साझा न कर
बस न कर घाटे का सौदा प्यार की दौलत कमा
तू अना दूजे की लेकर ख़ुद को तो बदला न कर
खींचनी दीवार है बेकार आँगन में कभी
एक रोटी प्यार की है तोड़कर टुकड़ा न कर
देख तेरी बात पर अटकी किसी की जान है
कर नहीं सकता जो पूरा वो कभी वादा न कर
बस नहाने से फ़क़त ही पाप तो धुलते नहीं
पाप जाकर तू नदी में यूँ मगर धोया न कर
लोग दुनिया के बना देते हैं तिल का ताड़ भी
फ़ालतू बेकार में ‘आनन्द’ तू बोला न कर
डॉ आनन्द किशोर