क़ब्र और क़फ़न
क़ब्र मेरी बिस्तर बनी और क़फ़न आकाश
आँखों में आँसू लेकर सब खड़े थे मेरे पास
तक रहीं थी मेरी राहें सबकी भीगी-प्यासी निगाहें
उस वक़्त लग रहा था जैसे हम भी हैं कुछ खास
माँ पागल थी आँगन में आँखें लाल लहू लेकर
कुछ सखी सहेली आईं उनकी देने लगी दिलास
बहिन की थाली सूनी थी राखी भी टूटी-टूटी थी
मैं आऊंगा एक दिन लौटकर,था दिल में यही विश्वास
फिर भाई के कांधे का बोझ अचानक बढ़ जाता है
आँख से गिरता हर एक आंसू फिर उसको ये समझाता है
तू रोया तो तेरी बहना और माँ को कौन संभालेगा
रो-रो कर है हाल बुरा तू रो कर और रुला देगा
कमी थी महफ़िल में यारों की, हसने वाला नहीं था पास
क़ब्र मेरी बिस्तर बनी और क़फ़न आकाश
…भंडारी लोकेश✍️