हज़ार सदियों के बाद
_ कविता_
हज़ार सदियों के बाद
*अनिल शूर आज़ाद
रानीखेत के
गोल्फ-ग्राउंड में घूमते हुए
अचानक..ख्याल आया
अमलतास का एक बड़ा
वृक्ष है, यह सृष्टि
जिस पर..करोड़ों तारे रूपी
बेशुमार फूल खिले हैं
हज़ार सदियों के बाद
जब यह धरती/कुछ औऱ
बूढी हो जाएगी/तथा
सूरज थकने लगेगा
आसमान पर दिखने वाली
इंद्रधनुषी-छड़ से/तब मैं
ढेर सारे फूल झाड़ कर
तुम्हारी झोली भर दूंगा
इसके बाद/तुम्हारे मुस्कराते ही
आगाज़ होगा/एक नई कायनात का।
(रचनाकाल: वर्ष 1991)