ह्रदय के आंगन में
मेरे हृदय के इस आँगन में, रहता था बस सूनापन
देकर अपनी मीठी छुअन, जगा दिया तुमने स्पंदन
क्यों किया तुमने ऐसा, चुभा दिया कांटा हो जैसा
क्यों जानी मेरी गहराई , और कहाँ पर है थाह पाई
छोड़ा फिर क्यों राहों में, लेकर पहले यूं बाहों में
क्यों झाँका तुमने मेरा मन ………………………
आए मिलन को क्यों तुम ऐसे, रौशन कीट पतंगों जैसे
क्यों रिश्तों के भाव जगाए, जो शब्दों से पास बुलाए
क्यों मुझसे मांगी परिभाषा, शब्दहीन आँखों की भाषा
मुझमें देखा खुद का दर्पण ………………………
समझो और समझाओ तुम, मुझमें खुद को पाओ तुम
न आयें हम न आओ तुम, खोकर बस हो जाओ गुम
आहें हो न निगाहें हो, अब राहे हो न बाहें हों
ऐसे करो मेरा आलिंगन ………………………
राधा की बजती पायल हो, और कृष्ण मुरारी घायल हो
कंगन की जब हो खन-खन, तान मधुर वंशी की धुन
यमुना तट का किनारा हो, वहीँ कहीं से पुकारा हो
झूम उठे सारा वृन्दावन ………………………
कान्हा को फिर नाच नचायें, या महारस को हम पाएँ
हृदयों में प्रेम का संगम हो, और तुझमें डूबा हर मन हो
मधुवन में तुम्हारे गुन्जन हो..बरसाने की रुन-झुन हो
कर दो मेरा मन पावन चन्दन ………………………