#ग़ज़ल-05
मीटर : 212-212-212-212
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दौर कितना बुरा हो डरें ना कभी
हौंसले से बढ़ें पर रुकें ना कभी/1
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धूप हो छाँव हो या शहर गाँव हो
खुश रहें राग ग़म का रटें ना कभी/2
??
मौज़ में ओज से काम हर कर चलें
साख से आँधियों मेंं गिरें ना कभी/3
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घर रहे प्यार से महकता हर समय
फ़र्ज़ से भूलकर भी हटें ना कभी/4्
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साथ दें घात की सोच भी ना रखें
यूँ जुड़ें हम जड़ों से कटें ना कभी/5
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ज़िंदगी प्रीत है दूर क्यों फिर रहें
रूठ के भूल से भी मिटें ना कभी/6
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तन मिटें हैं वतन के लिए क्या हुआ
याद ‘प्रीतम’ जहां से छटें ना कभी/7
?आर.एस.प्रीतम?