” हौंसला ही साथ देगा —– “
वज़्न : 2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
वक़्त ने कैसा दिया है आज नज़राना मुझे
रूठ कर खुशियाँ चली हैं मान बेगाना मुझे
हर क़दम अवमानना है दिन हुए हैं सिरफ़िरे
हौंसला ही साथ देगा खूब याराना मुझे
पल हँसी करते मिले हैं कर रहे चालाकियाँ
बावले सारा समझते एक दीवाना मुझे
बाँध कर बंदिश सुरों की जब हवा बहने लगी
तुम न आये , याद पगली रास है आना मुझे
शोर जब आवाज़ बनता पा गया अधिकार है
चाहते हो साथ देना हाथ पकड़ाना मुझे
राह बदली मीत बदले मैं रहा तनहा खड़ा
गंध समझा जब कपूरी भूल है जाना मुझे
स्वप्न कर बैठे बगावत लौट “बृज” आए नहीं
नैन कहते हैं पलक से बात समझाना मुझे
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )