हो राम सीताराम तुम…
छंद- हरिगीतिका
मापनी- 2212 2212 2212 2212
पदांत- तुम
समांत- आम
हो राम, सीताराम तुम, हो कृष्ण, राधेश्याम तुम.
दशरथ सुनंदन राम तुम, वसुदेव के घनश्याम तुम.
अग्रज लखन के थे तुम्हीं, बलराम के तुम थे अनुज,
कोशल अधिप श्रीराम तुम, जसुमति प्रथम नितनाम तुम.
तुमसे पुरी कहते अवध, ब्रजभूमि ही गोलोक है,
वाराह, कच्छप, कूर्म, मत्स्य, नृसिंह परशूराम तुम.
हो कल्कि वामन, बुद्ध के तुम रूप हो विधना तुम्हीं,
तुम पंचभूतों में बसे कण-कण महा आयाम तुम.
तुमसे चले ब्रह्माण्ड यह, तुमसे चराचर है जगत्,
अवतार तुम नारायणा, हो विश्व का परिणाम तुम.