हो मापनी, मफ़्हूम, रब्त तब कहो ग़ज़ल।
ग़ज़ल
221/1221/2121/212
हो मापनी, मफ़्हूम, रब्त तब कहो ग़ज़ल।
समझो न मियां काफ़िया रद़ीफ को ग़ज़ल।1
पहले तो पढ़ो जान एलिया व मीर को,
संगीत में जगजीत की सुना करो ग़ज़ल।2
तुम हुस्न हो मतले का काफिया रदीफ हो,
ऐ यार मेरे वास्ते तुम्हीं तो हो ग़ज़ल।3
ग़ज़लों का समंदर है डूब करके देखिए,
फिर आप भी ताजिंदगी कहो सुनो ग़ज़ल।4
तुमसे जो हुआ प्यार तब से बदली जिंदगी,
प्रेमी हूॅं मैं ग़ज़लों का मेरी तुम बनो ग़ज़ल।5
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी