हो पवित्र चित्त, चित्र चांद सा चमकता है।
हो पवित्र चित्त, चित्र चांद सा चमकता है।
हो मधुर वचन, ललाट सूर्य सा दमकता है।।
हो मित्र सारथी, युद्ध खेल जैसा लगता है।
हो सभी मे सत्य, घर धर्म स्वयं बसता है।।
हो पवित्र चित्त, चित्र चांद सा चमकता है।
हो मधुर वचन, ललाट सूर्य सा दमकता है।।
हो मित्र सारथी, युद्ध खेल जैसा लगता है।
हो सभी मे सत्य, घर धर्म स्वयं बसता है।।