हो न मुख़्लिस वो है फिर किस काम का
आँखों की कुछ तो नमी से डरते हैं
यार ऐसी ज़िंदगी से डरते हैं
हो न मुख़्लिस वो है फिर किस काम का
हम तो ऐसी दोस्ती से डरते हैं
काट दी है तीरगी में ज़िंदगी
अब तो अक्सर रौशनी से डरते हैं
जो न जाने दास्तान-ए-कर्बला
लोग वो ही तिश्नगी से डरते हैं
इस तरह मरना तो जाइज़ है नहीं
इसलिए हम ख़ुदकुशी से डरते हैं
जो भी बच्चे जी रहे माँ के बिना
एक बस माँ की कमी से डरते हैं
~अंसार एटवी