हो जिसके हाथ लाठी
हमें सब कुछ पता है कैसे क्या सरकार होता है
है चोला सेवियों का पर फ़क़त व्यापार होता है
लड़ाई कुर्सियों की है महज़ इस मुल्क में क्योंकि
हो जिसके हाथ लाठी वो ही थानेदार होता है
बहा दी खून की गंगा हुआ बलवा शहर भर में
मगर बदनाम मज़हब ही यहाँ हर बार होता है
सुनो पहचान क्या है आम इंसानों की भारत में
है चेहरा शुष्क लेकिन हाथ में आधार होता है
छुपी रहती है अच्छाई यहाँ पर लाख परदों में
मगर इज्ज़त का बँटवारा सरेबाजार होता है
न जाने ख़्वाब कितने देखता है रात भर ‘संजय’
सुबह उठता है तो बस हाथ में अखबार होता है