होली
होली के रंग अपनों के संग और निखरआते हैं।
निश्छल प्रेम और निस्वार्थ भाव से खेले जाते हैं।।
दूर देश से आए विहंग जब अपना राग सुनाते हैं।
मधुर ताल और मधुर धुन पर जब गीत सुनाते हैं।।
मन कली खिल जाती जब बिछडे मिल जाते हैं।
ऊंच-नीच का भेद भूल कर जब वह गले लगाते हैं।।
अपने से लगते हैं सब होली का गुलाल उड़ाते हैं।
रंग बिरंगी उडे तितलियां यूं गगन मे चढ जाते हैं।।
झंकार सी होती जब एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं।
तन मन पुलकित हो जाते हैं मृदंग से बज जाते है।।
जाने अनजाने में एक दूसरे को गुलाल लगाओ जी।
रंगों का त्यौहार सब मस्ती के रंगो में रंग जाओ जी।