होली
पिचकारी बच्चों की खातिर,
भरी गिलासें आप के लिए।
नमन आपके बाप के लिए।।0।।
आओ मिलकर कदम बढ़ाए,
भूल-भुलाकर कड़वी बोली।
जाति-धर्म और देश-प्रांत क्या,
विश्व-जगत को हैप्पी होली।
मिले हृदय औ बात रहे ना,
कोई पश्चाताप के लिए।
नमन आपके बाप के लिए।।1।।
वसुधा ही परिवार हमारा,
फिर हम क्यों हैं उहापोह में
इकदूजै को कैसे दाबें,
लगे हुए हैं इसी टोह में
आओ हाथ बढ़ाएँ आगे,
अब हम भेंट-मिलाप के लिए।
नमन आपके बाप के लिए।।2।।
रंग इधर से, रंग उधर से
यूँ होली का सीन बना दें
साफ करें बदरंगा चेहरा
दुनिया और हसीन बना दें।
चलो कुएँ में भांग घोल दें,
जग में बढ़ते ताप के लिए।
नमन आपके बाप के लिए।।3।।
द्वेष सदा ही कष्ट बढ़ाता,
दहन कीजिए इस होली में,
प्यार बाँटने से बढ़ता है,
अतः लुटा दें जो झोली में।
कोई भी पगचिह्न न छोड़ें,
जग में करुण विलाप के लिए।
नमन आपके बाप के लिए।।4।।
कविः
नन्दलाल सिंह ‘कांतिपति’
मो. 09919730863
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