होली
?होली?
(कुण्डलिया)
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होली का यह मास है, मस्त फागुन मधुमास।
रंग लगाओ मिलजुल कर, रंग दो सबको लाल।।
रंग दो सबको लाल, नहीं कोई बैर भाव हो
बनी रहे भाईचारा , चहुओर प्यार ही प्यार हो।।
कहे “सचिन” कविराय भरो सब प्रेम से झोली
प्रेम भाव के संग रहो , और खेलो होली ।।
होली में बौराय रहे, बृद्ध बालक व जवान।
सराबोर भैया दिखे, भौजी लालमलाल।।
भौजी लालमलाल, रंग गई प्रेम के रंग में
पीये ढंडई सब आज, मिला है दुध जो भंग में।।
कहे सचिन कविराय, खाओ सब भग की गोली
आपस में मिलजुल कर, खेलो प्रेम से होली।।
होली के हुड़दंग में, करो नहीं नुकसान।
भाईचारे का पर्व यह, करो सभी सम्मान।।
करो सभी सम्मान, मिटे नफरत हर मन में।
भाईचारा और प्रेम रहे, हर घर हर जन में।।
कहे “सचिन” कविराय, प्रेम रंग भरलो झोली।
आपस में रहे प्यार, सभी मिल खेलो होली।।
हर्षोल्लास का पर्व यह, होली जिसका नाम।
दुश्मन बनते दोस्त यहाँ, बनते बीगड़े काम।।
बनते बीगड़े काम, क्लेश यह दूर भगाता।
अपने तो अपने , गैरों को गले लगाता
सचिन कहै सुख से रहो, मन में रखो आश।
रंग गुलाल उड़ता रहे, फैले हर्षोल्लास।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”