होली का रंग
होली का रंग
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होली का रंग वीभत्स नहीं ,
ये अश्लील नहीं रंग जीवन है।
ये राग-रंग का है पर्व सदा ,
निर्मलता सौहार्द संजीवन है।
हिरण्यकशिपु पिशाच था जो ,
उसे अंत करने नरसिंहावतार हुआ।
भक्त प्रह्लाद की हुई जीवन रक्षा ,
इस रंग में छिपा नारायण है।
देखो ये रंग बदनाम न हो ,
रंग खेलो पर हैवान न हो ।
मर्यादापुरुषोत्तम का देश है ये ,
यदि विवेक नहीं फिर निर्जीवन है।
हर नारी शक्ति है देवी दुर्गा ,
रखना है सदा इसकी लज्जा।
जो पुरुष सदा करे इनकी रक्षा ,
वो ही वीर और धर्मपरायण है।
पतझड़ बीता नवकोपल कोमल ,
गाती है मधुर पंचम सुर कोयल।
फागुन का रंग वसंतोत्सव है ,
मनप्रीत सिखाता मधुवन है।
होली है राग-रंग का पर्व सदा ,
निर्मलता सौहार्द संजीवन है।
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण