होली का रंग-बहनों के संग (कविता)
*होली का रंग
बहनों के संग*
********************
भाई को चिंतित देख,
होलिका वेदी चढ़ी।
ऐसा सच्चा प्रेम स्नेह ,
बहनों में दिखता आज भी।
माता-पिता भाई की,
आलोचना न कभी सुनती।
निभा रही ससुराल में,
सुन कर न चुप रहती।
हर कष्ट सहती हस हस,
इन नामों पर लड़ पड़ती।
टूट जाती सहनशक्ति,
आग से भी नहीं डरती।
खेल होली आग की,
होलिका सा दहन करती।
दहेज के झोंको से बचने,
जान देने नहीं जलती।
मायके की आन-बान,
जीवन का आधार जान।
कलंकित होते देख मान,
प्राण देना निश्चित ठान।
होली की होलिका को,
आदर्श अपना समझती।
*******************
राजेश कुमार कौरव सुमित्र