होना
खुद को काफ़ में महदूद कर बे- नाम -ओ – निशाँ होना
तुम्हें आसान लगता है मिरा मुंतख़ब रूह-ओ-रवाँ होना
इब्तिदा से हसरत पाला नफ़रत तीरगी रंजिस मिटाना
मसलन दस्तियाब कर रहा हूं इल्म तमस में अयाँ होना
कोई चाहे भी तो जान नहीं सकता इक कतरा भी मिरा
उघड़ते उघड़ते इस जहान सीख गया राज़-ए-निहाँ होना
साजिश गोला बारूद ये अज़ाब ओ शबाब सब फ़ुज़ूल
अब मुहाल है मिरा यार कागज़ ओ क़्लब से रायगाँ होना
मौत , नफ़रत , तन्हाई अज़ाब सब सुकूँ है इसके सामने
साहब किसी जहन्नुम से कम नहीं मग़्लूब – ए – गुमाँ होना
जो खुद मशहूर है अपने बुरे नाज़ ओ मेयार के ख़ातिर कुनु
वो मुझे तालीम दे रहे ग़ज़ल में अदब-लिहाज़ ए ज़बाँ होना