होना नहीं अधीर
गीतिका
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धन दौलत का अभिमान लिए, होना नहीं अधीर
है जिसका हृदय जितना बड़ा, उतना वही अमीर
बहुत प्रयास किए लेकिन जब, मिले नहीं परिणाम
नया अभी कुछ कर के देखें, पीटें नहीं लकीर
पुरखों का यह देश पुरातन, अपना देश महान
नेता बहुत भ्रम में यहां, समझें निज जागीर
निशा निराशा मिट जाती है, करते रहें प्रयास
तेज रौशनी की किरणें जब, तम को देती चीर
काम सभी के आना सीखें, यही हमारा धर्म
खिला रहेगा जब मन अपना, देगा साथ शरीर
भाव नहीं रह पाते वश में, दर्शाते हर बात
जब छलकेगा स्नेह नयन से, खूब बहेगा नीर
सेतु बनाएं स्नेह भरे हम, आ जाएंगे पास
कभी नहीं आपस में मिलते, किसी नदी के तीर
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १७/०५/२०२४