*होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला (राधेश्यामी छंद)
होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला (राधेश्यामी छंद)
_________________________
होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला
संतति को है अमरित देता, खुद पीता है विष का प्याला
सुत और सुता की ही चिंता, जीवन-भर जिसे सताती है
कितना बोझा रहता उस पर, मॉं सिर्फ जान यह पाती है
————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451