होता लज्जा का रहा
कुंडलिया छंद…
होता लज्जा का रहा, सदियों से सम्मान।
आभूषण नारी बता, करते जन गुणगान।।
करते जन गुणगान, मानते इसको गौरव।
महके सारा विश्व, सुवासित पावन सौरव।।
संस्कृति का विध्वंस, देखकर मन है रोता।
‘राही’ हर बाजार, नहीं सच अच्छा होता।।383
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)