होता आज जो अंतिम दिन।
होता आज जो अंतिम दिन,
तो नहीं मैं किसी से झगड़ता,
होता आज जो अंतिम दिन,
तो रखता मैं चेहरे पे मुस्कान,
हर एक गुज़रते पल को मैं,
करता प्रेम से प्रणाम,
जी लेता जी भर के अपना,
मैं ख़ुद से जुड़ा हर रिश्ता,
कि तेज़ी से गुज़रती ज़िंदगी में,
छूटता है सब कुछ आहिस्ता,
ना रखता मन में द्वेष कोई,
ना क्रोध में ख़ुद को जकड़ता,
भूल जाता हर कड़वी बात को मैं,
बस अच्छी ही यादों को पकड़ता।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।