है ये मौसम हंसी और मैं भी जवां
विधा-गीतिका
छंद-स्रग्विणी वाचिक (मापनी युक्त)
मापनी २१२ २१२ २१२ २१२
समांत-आ
पदांत-दो पिया
मेरे केशों में गजरा सजा दो पिया।
मेरे सीने में इक लौ जगा दो पिया।।(१)
प्यार पाने को करता ये धक्-धक् जिया।
प्यार की एक नदिया बहा दो पिया।।(२)
ओठ प्यासे हैं मेरे सजन प्यार के।
प्यार का एक मौसम बना दो पिया।(३)
मैं तड़पती रही हूं सनम प्यार में,
अब न कोई जरा सी सजा दो पिया।(४)
है ये मौसम हंसी और मैं भी जवां,
मेरे आंचल की रौनक बढा दो पिया।(५)
मैंने सौपा है सब कुछ जिगर का सनम
क्या छुपा है जिगर में बता दो पिया।(६)
मन बयानी नहीं और कुछ अब अटल
मन में तेरे है जो कुछ दिखा दो पिया।।
?अटल मुरादाबादी ?