है यहां
2122 2122 2122 212
ये मदद के नाम पर करते तिजारत है यहां।
प्यार है कुछ भी नहीं सबकुछ हि दौलत है यहां।
आपने मुझको कहा सबकुछ मुझी में है आपका।
आज कुछ मसला यूं बदला अब अदावत है यहां।
नींद मुझको भी नहीं है आप भी सोए नहीं।
क्या करें यारा मोहब्बत ही शिकायत है यहां।
खोजता मुद्दत बिताया तब मिले है आप भी।
हां मिला सबकुछ नया सा अब मोहब्बत है यहां।
एक उनकी एक मेरी रूह के मिलते हि देखो
वो मिरा है देवता वो ही इबादत है यहां ।
और ना कुछ चाहिए रब से यही दीपक कहा।
गर मिले जाना मुझे दूजा न चाहत है यहां।
कवि दीपक झा रुद्रा