है प्यार मगर इंतज़ार नहीं।
दिल में छुपे हैं जज़्बात कई पर,
जज़्बातों का कहीं इज़हार नहीं है,
जुबां पे तो ये आया न कभी,
पर कैसे कहूं कि प्यार नहीं है,
है हसरत कि कुछ पल जी लूं तुम संग,
इस बात से मुझे कोई इंकार नहीं है,
बेहद प्यार की हद क्या कहिए हुज़ूर,
कि है प्यार मगर इंतज़ार नहीं है,
कोई शक नहीं कि हो अपनों में शामिल ,
पर जताया मैंने कभी इख्तेयार नहीं है,
वक्त मांगना चाहूं पर मांग न सकूं मैं “अम्बर”
कि वक्त का भी कोई ऐतबार नही है।
कवि-अम्बर श्रीवास्तव।