है न शिकवा मुझे सदाक़त से
है न शिकवा मुझे सदाक़त से
है शिकायत मुझे रवायत से
वो ही मग़रूरियत में रहता है
जिसको दुगना मिला ज़रूरत से
दौलतें ज़ुल्म हुकुमतें ,ताक़त
जीत न पाया कोई मुहब्बत से
दिल पे ताला लगा के रखना है
दिल तो रुकता नहीं शरारत से
कितने धोके भी उसने खाये हैं
क्यूँ न नफ़रत हो उसको चाहत से
जब से दौलत के ढ़ेर पर बैठा
बात करता नहीं शराफ़त से
वो मज़ाकों में तंज करता है
बाज़ आता नहीं वो आदत से
मुझको तरक़ीब एक बतलाओ
कैसे पीछा छुटे नदामत से
प्यार ‘आनन्द’ है अगर पाना
डर नहीं आज फिर हिमाक़त से
– डॉ आनन्द किशोर