आना है फ़क़त लौट के जाने के लिए आ
आना है फ़क़त लौट के जाने के लिए आ
दस्तूरे-वफ़ा मुझसे निभाने के लिए आ
गुरबत में कभी साथ निभाने के लिए आ
इक बार तो हिम्मत भी बढ़ाने के लिए आ
भीगी है फ़िज़ा और सुलगता है मेरा दिल
इस दिल में लगी आग बुझाने के लिए आ
मुद्दत से ये दहलीज़ मेरे दिल की है सूनी
आबाद इसे कर दे सजाने के लिए आ
ताला सा लगे ख़ुद से ही लोगों की ज़ुबाँ पर
वादा जो किया उसको निभाने के लिए आ
मैं ज़ब्त अपना देख लूँ इस बार है कितना
इक बार ज़रा फिर से जलाने के लिए आ
मुमकिन है तुझे देख के मिल जाए सुकूँ फिर
जज़्बात मेरे दिल के दबाने के लिए आ
दस्तूर यही आग को पानी है बुझाता
इक आग सी पानी में लगाने के लिए आ
मालूम ये होगा कि मैं मुद्दत से हूँ प्यासा
‘आनन्द’ की कभी प्यास बुझाने के लिए आ
– डॉ आनन्द किशोर