है दौर परिवर्तन का
परिवर्तन
है परिवर्तन
प्राकृति का नियम
कभी शीत
तो कभी ग्रीष्म
बरसात है
पावन ॠतु
चहुंओर फैली
हरियाली और
खुशहाली
चलता रहता
दौर परिवर्तन का
अंधविश्वास
अंधकार का
हो अंत
फैले उजियारा
हर घर
आज खरी
उतरती हैं
बेटियाँ
हर चुनौती का
करती सामना
डट कर
बेटियाँ हैं सहारा
माता पिता का
यह भी है
एक कहानी
परिवर्तन की
करें स्वागत
परिवर्तन का
ढलें और ढालें
अपने को
नये युग में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल