है कुछ पर कुछ बताया जा रहा है।।
गज़ल
1222………1222………122
है कुछ पर कुछ बताया जा रहा है।।
किधर को देश अपना जा रहा है।1
पिलाया इस कदर मीठा जहर जो,
न उगला ही, न निगला जा रहा है।2
कहीं ठंडी से सब कुछ जम गया तो,
कहीं गर्मी से जलता जा रहा है।3
ये हालत हो गई है आम जन की,
वो महगाई से मरता जा रहा है।4
कमाता है जो भूखा पेट सोता,
जो खाली, देश खाता जा रहा है।5
जो खाते हैं, न चलते दो कदम भी,
उन्हीं का तोंद लटका जा रहा है।6
हैं उनके और दीवाने बहुत से,
ये ‘प्रेमी’ को दिखाया जा रहा है।7
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी।