है कर्तव्य हमारा
मायावी को माया से ही, सदा जा सका मारा।
उद्धत के सॅंग उद्धत होना, है कर्तव्य हमारा।।
क्रोधी को अक्रोध से जीतें, दुर्मुख को समझाएं।
दान कृपण को दें, झूठे को – सच का पाठ पढ़ाएं।।
मगर नीति से विमुख नराधम, ने हो यदि ललकारा,
तब तो वीर वही है जिसने, उसे शीघ्र संहारा ।।
जहाॅं अहिंसा काम न आए, हिंसा वहाॅं उचित है।
बल है अगर बाजुओं में तो, खल-बध सदा स-हित है।।
करें विनष्ट आततायी को, मानवता का नारा।
रावण को भगवान राम ने; कंस, कृष्ण ने मारा।।
न्याय – सत्य के लिए समर में, मर जाना श्रेयस्कर।
दुष्कर्मी से क्षमा मांगकर, जीना त्रासद – दुष्कर ।।
काॅंटे को काॅंटे से बाहर- करें, न हो यदि चारा।
करें लोककल्याण, गीत गाएगा कविकुल सारा।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी