है इतना शोर ये सुनसान क्यों नहीं होता
ग़ज़ल
है इतना शोर ये सुनसान क्यों नहीं होता।
हमारा दिल है कि वीरान क्यों नहीं होता ।।
ये जान मेरी निकल जाती तेरे जाने से ।
तू जान कर भी मेरी जान क्यों नही होता।।
अना का बोझ लिये सर पे घूमता हूँ मैं ।
इसे उतारना आसान क्यों नहीं होता।।
सबब बनी है अदावत का मेरी दानाई।
सभी हो खुश तो मैं नादान क्यों नहीं होता
लगा तो है ये ख़ुदा बनने में मगर पहले।
ज़रा ये आदमी इंसान क्यों नहीं होता।।
भरा जो पेट परिंदों का छोड़ते दाना।
इस आदमी को ही ईमान क्यों नहीं होता।।
“अनीस” भूख ग़रीबी ये जुल्म बेकारी।
तुम्हारी नज़्म का उन्वान क्यों नहीं होता।।
अनीस शाह “अनीस”