हैं रौनक तुम्ही से दुनिया
सबसे पहले आप सम्बोधन करे कुछ इस तरह से —–
आज हम अपना 72 वा गणतंत्र दिवस मना रहे है कोरोना महामारी की वजह से अबकी बार किसी मुख्यअतिथि को नही आमंत्रित किया गया है ।
I am ( apna naam bol diziyega) I am a student astha coaching B.sc 1st year.
नतमस्तक हो उन शहीदो के चरणो में ।
दिलाई आजादी जिन्होने अपने देश को क्षणो में ।
होते गर न शहीद तो ।
अंग्रेजो को कोई डर न होता ।
चक्रवात सा उमङता था उनके अंदर ।
उखाङ फेंका उन गोरो को अपने देश से बाहर ।
आजाद हुए गणतंत्र हुए ।
फिर भी हम भ्रष्टाचार से न स्वतंत्र हुए ।
असली गणतंत्र तो हमारी नजर मे तब आएगा ।
जब इस देश का हर युवा रोजगार पाएगा ।
तभी इस देश में नवसृजन, नव ऊर्जा का संचार हो पाएगा ।
आज हम आप लोगो के सम्मुख महिलाओ के सशक्तिकरण को अपनी एक स्वरचित कविता के माध्यम से आपके सामने पेश करने जा रहे अगर अच्छा लगे तो एक जोरदार तालिया बजाकर हमारे हृदय को यह एहसास दिला देना की हम भी इक छोटी सी कवयित्री है ।
समझते है जो पहले उनको समझा दे हम ।
ये लडकिया चूल्हा फूंकने ।
और झाडू मारने का ही काम नही कर रही है ।
बल्कि लङाकू विमान भी उङा रही है ।
बंद है जिसकी अभी तक आँखे ।
थोड़ा वो आगे भी झांके ।
नजरिए को बदले वो अपने ।
लङकिया किसी लङको से कम नही ।
अगर ठान ले वो तो वे भी पुरा कर सकती है अपने सपने
सबसे पहले मुझे एक भारतीय होने पर गर्व है ?
हैं हौसला हममें भी ।
कुछ कर गुजरने का ।
हम लङकिया हैं ।
संस्कृति और सभ्यता ।
की एक ओजस्वी ।
झलकिया है ।
ठण्ड हो कितनी फिजाओ में ।
पहुंच चुका हो ताप शून्य पर ।
पर मेरे अंदर की तपिश से ।
पिघल जाएंगे सब ।
निकल जाएँगे रास्ते बहती नदी से।
लङकिया है हम दूसरे की नजर में ।
अपनी नजर में हम किसी शेरनी से कम नही ।
कौन है ऐसा क्षेत्र जिसमें हम नही।
संगीत हो, खेल हो या पूरा भूडोल हो ।
राजनीति ,पर्वतारोही या वैज्ञानिक का माहौल हो ।
वीराग्नाओ से भी है न खाली ।
अपनी भारतभूमी महान ।
लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चांद बीबी ने दिए है जान ।
इतिहास के पन्नो मे उत्कीर्ण ।
नामो पर रहे हमेशा ध्यान ।
होता है जब एक पुरूष शिक्षित ।
तब महज एक व्यक्ति होता है शिक्षित ।
जब एक महिला होती है शिक्षित।
तब पुरा पीढ़ी होती है शिक्षित ।
होती न अगर ये लड़कियां ।
तो संसार मे न कोई रौनक होती ।
किलकारियाँ तक न गूँजती किसी की ।
न कोई बच्चा रोता ।
मां, बहन पत्नी,बहू, बेटी ।
के बगैर ।
यह जहां किसी नरक से कम न होता ।
यह यशस्वी इतिहास हमारा ।
ऋग्वैदिक काल से ही ।।
अपाला, गार्गी, लोपा मुद्रा ।।
वेद को सुक्तो को रचकर ।
अपना तेजमयी परचम लहराया।
दिग्दिगंत, ब्योम -पाताल तक ।
है उनकी ओजस्वी छाया ।
है आस्था हमें बदल देंगे हम ।
हो प्रफुल्लित प्राप्त करेंगे अपने लक्ष्य को ।
हो कितनी भी कठिनाईया या हो फिर कितना भी गम ।
कुछ करके दिखाना है ।
नही तो हमें इस धरा पर दिखना नही ।
हार मिलती है अगर ।
मुझको नही है कोई डर ।
ऐसा तो एक दिन जरूर आएगा ।
दिखा देंगे सब कुछ हम जीतकर।
महिला सशक्तिकरण होगा न तब तक ।
आत्मनिर्भर नही होंगी सारी महिला जब तक ।
एक बार फिर से देश के आजादी से लेकर गणतंत्र राष्ट्र को बनाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और शहीद को भगवा रंग में रंगकर नमन और यहां पर उपस्थित सभी देशभक्तो को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए ।
जय हिंद
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