‘हे सबले!’
कला की अनोखी मिशाल ड्रीमगर्ल ,
जोड़ा जग से नाता अभिनय कर ।
या पन्त की तोड़ती पत्थर ,
इलाहबाद के पथ पर,
जो बना वस्त्र की इक झोली ,
शिशु को अपने लटकाए रहती दिनभर,
करती कर्म निरंतर,खटती रहती उफ़ ना करती,
लिए रेत-ईंट का बोझा सरपर।
मुस्काती हुई बढ़ती रहती,
निरंतर अपने जीवन पथ पर ,
या फिर हो पहाड़ की नारी,
जो ढोती बोझ पीठ पर ,
चढ़ती-उतरती संभल-संभल पग धर,
टेढ़ी-मेढ़ी पथरीली चट्टानों पर।
या हो गृहणी,जो सेवा करती,
जूठन धोती रहकर घर पर,
दबा हृदय की अभिलाषाएँ,
करती पूर्ण सभी की इच्छाएँ हँस–हँस कर,
तुम सभी सौंदर्य की प्रतिमाएँ हो इस धरती पर,
अलग-अलग रूपों में भाव जगाती मानस मन पर।
करूँ नमन ! मैं वारूँ चरणों में सुमन तुम्हारे ,
हे सबले ! अंजली भर-भर कर ।
-गोदाम्बरी नेगी