*हे शिव शंकर त्रिपुरारी,हर जगह तुम ही तुम हो*
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हे शिव शंकर त्रिपुरारी
हर जगह तुम ही तुम हो।
जल में तुम हो थल में तुम
धरती का कण कण,तुम हो।
चांद और तारों में तुम हो
सूरज की तेज किरण तुम हो।
हरे भरे पेड़ो में तुम
मदमस्त हवा में,तुम हो।
यंत्र में,तंत्र में,मंत्र में तुम हो
हर काया में माया,माया का
साया तुम हो।
बर्फ की चादर तुम हो
सूरज की कांति,तुम हो।
काम क्रोध मद लोभ में तुम
भक्ति के….भाव में तुम हो।
काशी के कण कण में तुम
गंगा की धार में तुम हो।
भोर होत हर हर बम बम
वाणी में बाबा तुम हो।
^मोक्षदायिनी काशी में तुम
मृत्युंजय,विषकंठ,यजंत,तुम हो।
मेरा भोला भंडारी भंडार भरता है।
जीवन देता है,संहार भी करता है।
संसार में तुम, परिवार में तुम,
श्मशान की राख में तुम हो।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।