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15 May 2021 · 1 min read

हे वसुधा, हे जननी ————- गजल/गीतिका

हे वसुधा हे जननी ,यह कैसा अंधेर है।
है बेटे मां हम तुम्हारे ही न कोई गेर हैं।
हुए हो अपराध हमसे ,मां क्षमा करो।
बचाईए प्राण अब तो हो क्यों रही देर है।।
मानते हैं, हमने तेरी हरी-भरी छटा को बिगाड़ा।
रोपेंगे,सिंचेंगे,तरुवरो को ,सुनो हमारी टैर है।।
बच्चे करते अपराध, मां ही माफ करती है।
कैसे देख पा रही हो आप, लाशों के लगे ढेर है।।
करता विनती “अनुनय” जीवन हो फिर सुखमय।
नमन तेरे चरणों में मेरा, मां सांझ सवेर है।।
राजेश व्यास अनुनय

2 Likes · 4 Comments · 206 Views
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