हे, वंशीधर! हे, त्रिपुरारी !!
नित नूतन परिवर्तन जारी है
जग में भीड़ बड़ी भारी है
दो घटकों में नर-नारी हैं
अब देखो किसकी बारी है ।
हे, वंशीधर! हे, त्रिपुरारी !!
हे महादेव !!! संहार,
भगवाधारी कालनेमि
कर रहे आज व्यभिचार।
मूल फूल मठ मन्दिर शाला
हो रहे आज बदनाम ,
ये जटा-जुट कठ-माला
धारी करते ऐसे काम।
फैला कर पाखण्ड निराला
बन बैठे धर्माचारी
सूरा सुंदरी में मन पतितकर
हो गए बलात्कारी।