हे राम !
प्रार्थना सभा में गोलियों की आवाज सुनाई दी
और बापू चुप हो गए!
भजन- संध्या के गीत बंद हो गए
उभरते स्वर और बोल बंद हो गए
कुछ पल बाद एक स्वर गूंजा
”हे राम”
और शोर हो गया
बापू चल बसे
गोलियों ने उनकी जान ले ली
बापू की जान चली गई
एक महात्मा भगवान के प्यारे हो गए।
सत्य अहिंसा का पुजारी
हिंसा का शिकार हो गया।
किसकी थी साजिश ?
किसकी थी गोली?
किसकी थी बोली?
कोई पकड़ाया, कोई भाग गया
अदालत ने इंसाफ किया
सब कुछ साफ -साफ हो गया।
ऐसा ही होता है क्या?
गोली चली और आप भी चले गए !
स्वस्थ होकर आते
हमारे बीच रहते
हमारे साथ रहते
हमें दिशा दिखाते
देश की दशा को अपने हाथों संवारते
आपका दर्शन हमारे लिए प्रकाश स्तंभ है
जिसके आलोक में हम अग्रसर हो रहें हैं।
हम स्वतंत्र हैं, स्वाधीन है
हम गणतंत्र है, संप्रभु हैं
आजादी का अमृत- महोत्सव मना चुके हैं
शताब्दी वर्ष का आगाज हो चुका है
भारत का तिरंगा ऊंचा लहरा रहा है
हम नया आसमां तलाश रहे हैं
बढ़ रहे है आगे,
विकास कर रहे हैं
तीसरी अर्थव्यवस्था के दौड़ में हैं
चार सौ वर्षों की गुलामी आप ने तोड़ा है
पांच सौ बाद (लगभग ) ”रामलला ”
अपने जन्मभूमि पर आए हैं
जिसे अपने पुकारा था ‘ हे राम’
वे ही आए हैं।
धार्मिक सम्रदायिकता भी बढ़ रही है
आज यदि आप स्वर्गवासी होते तो
समाधि पर ‘हे राम ‘ लिखने में
शायद आनाकानी होती ।
मैं करता हूं प्रणाम आपको
राम -राम आपको।
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@मौलिक रचना -घनश्याम पोद्दार
मुंगेर