सम्बन्ध
वन,बाग,उपवन,वाटिका है तेरा अभिनंदन
पवन संग चतुर्दिक है सुरभित सुरभित चंदन।१
प्रकृति की स्वीकृति आकृति का हैआधार
इसे मन धारण कर,करें उचित व्यवहार ।२
जीवंत हो उठे कंकड़-कंकड़,पत्थर-पत्थर
जब छू लिया इन्हें प्रभु चतुर्भुज ने आकर।३
जब प्रभु कालिंदी में,पितु संग उतरते चले गए
तब उनके पद पंकज,जल में धुलते चले गए।४
संसार दंडवत है जिन पर मंदिर-मंदिर आकर अति प्रसन्न हुए नंद जसोदा ने इनको पाकर।५
माता-पिता का स्नेह सहित,जब हुआआह्वान
सम्बन्धों मे उलझ गये,जग के समस्त विधान।६
गो,गोप,गोपी,गोवर्धन को दिए प्रेम का ज्ञान
करते सेवा वृंदावन में स्वयं करुणानिधान।७
पीताम्बर ओढ चित्त को हरने वाले
सदा बैजंती माल उर पर धरने वाले।८
गोपी पूछ रही प्रभु से यह कैसा संबंध
प्रभु बोले परमात्मा का,जीवात्मा से अनुबन्ध।९
पार्थ से मित्रवत सम्बन्ध रख,दे रहे उपदेश
जीवात्मा अमर-अजर है,शरीर है परिवेश।१०
सद्गति जीवन को मिले होय सदा कल्यान
प्रभु को हिय में राखिये ना छूटे सत्य विधान।११