हे मानस के राज दुलारे,सुन धरती के इंसा रे
हे मानस के राज दुलारे, सुख शांति अमन बरसा रे
छोड़ दो हिंसा राग रे, प्रेम प्रीत के सुमन खिला रे
सारी दुनिया एक मालिक की,बनी बनाई है रे
मजहब में मत बांटो इंसा,बंदा इंसान तो है रे
क्यों जिहाद कर मार रहा, धरती पर इंसा रे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी