हे माधव हे गोविन्द
हे माधव हे गोविन्द ,
हम इतने अभागे इतने दीन।
प्रतिदिन तेरा सुमिरन करते ,
फिर भी भक्ति से हैं हीन।।
हे माधव हे गोविन्द।। 2।।
तेरी कथा का पान करू ,
तेरी गीता का गान करू।
तेरे भक्तो के आश्रय रहकर ,
मैं प्रतिदिन तेरा नाम रटु ।।
हे माधव हे गोविन्द।। 2।।
तुम अनंत ब्रह्माण्ड के स्वामी ,
मैं बद्ध जीव माया कामी ।
जन्मजन्मांतर भटक रहा था ,
तेरा आश्रय चाह रहा था।।
हे माधव हे गोविन्द।। 2।।
इस जन्म में तेरी दृष्टि पड़ी ,
मन शांत और आत्मा तृप्त हुई।
आनंद मग्न था जो माया में ,
उसकी परमानन्द से भेट हुई।।
हे माधव हे गोविन्द।। 2।।
न बृजवासी सी व्याकुलता ,
न मीरा सा है प्रेम मुझे।
तेरे ज्ञान को समझ सकू ,
ऐसा कहाँ सामर्थ्य मुझे ?
हे माधव हे गोविन्द।। 2।।
न ही हूँ, मैं सरल ह्रदय ,
ना ही मान रहित, अभिमान रहित।
फिर भी तुम कितने शुभचिंतक ,
कृपा करि पक्षपात रहित।।
हे माधव हे गोविन्द।। 2।।
जितनी तूने कृपा करी ,
उसकी थोड़ी भक्ति तो कर पाउ ।
अंत समय जब स्वांस मिटे तो ,
हरिनाम तो तेरा ले पाउ।।
हे माधव हे गोविन्द।। ३।।